ढहते विश्वास कहानी का सारांश | Dhahte vishwas kahani ka saransh
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ढहते विश्वास कहानी का सारांश | Dhahte vishwas kahani ka saransh |
इस लेख में ढहते विश्वास कहानी का सारांश | Dhahte vishwas kahani ka saransh दिया गया है।
अगर आप कक्षा - 10 ( Class 10th ) में है और बिहार बोर्ड परीक्षा में शामिल होने वाले हैं तो इस लेख को ध्यानपूर्वक अवश्य पढ़ें।
क्योंकि इस लेख में कक्षा दसवीं के हिंदी वर्णिका भाग -2 के पाठ - 2 ढहते विश्वास कहानी का सारांश | Dhahte vishwas kahani ka saransh दिया गया है। जो आपके बोर्ड परीक्षा में पूछे जा सकते है तो अपने तैयारी को बेहतर बनाने के लिए नीचे दिए गए सभी प्रश्नों को अवश्य पढ़ें।
Bihar Board Class 10th ka hindi ka question answer
1. ढहते विश्वास कहानी के कहानीकार "सतकोरी होता जी" का परिचय दें-
उत्तर: सातकोरी होता उड़िया के प्रमुख कथाकार है। इनका जन्म 29 अक्टूबर 1929 ई° में उड़ीसा के म्यूरभंज नामक स्थान पर हुआ था। अब तक इनकी एक दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। होता जी भुवनेश्वर में रेल यातायात सेवा के अंतर्गत रेल समन्वय सयुक्त व उड़ीसा सरकार के वाणिज्य एवं परिवहन निगम के अध्यक्ष रह चूकें है। इनके कथा साहित्य में उड़ीसा का जीवन गहरी आंतरिकता के साथ प्रकट हुआ है। यह कहानी राजेंद्र मिश्र द्वारा संपादित एवं अनुदित उड़िया की चर्चित कहानियां (विभूति प्रकाशन, दिल्ली) से यहां साभार संकलित है।
2. लक्ष्मी के व्यक्तित्व पर विचार करें -
उत्तर: लक्ष्मी एक अनपढ़ ग्रामीण महिला थी । वह अकेले तीन- चार बच्चो का भरण पोषण करती थी। उड़िसा जैसे बाढ़ और सुखाड़ वाली जगह पर भी वह बड़ी जीवटता का परिचय दे रही थी । वह कुछ कमा भी लेती और अपनी जमीन पर खेती भी कर लेती थी। बाढ़ के समय वह जाग कर बांध की रखवाली करती। इस प्रकार लक्ष्मी बहुत ही जागरूक, मेहनती, अनपढ़, देहाती किन्तु बुद्धिमान महिला थी।
3. ढहते विश्वास कहानी का सारांश प्रस्तुत करें -
उत्तर: लक्ष्मी बाढ़ के आतंक के बारे में सोचकर दु:खी हो रही थी। उसका पति लक्ष्मण कोलकता में कही पर नौकरी करता था। पति के वेतन से जो पैसे उसे मिलते हैं। उससे घर-गृहस्थी का खर्च नही चल पाता था । अत: वह तहसीलदार साहब की हवेली में छिट-पुट काम करके जो पैसे कमाती थी उसी से पूर्वजों द्वारा छोड़ा गया एक बीघा खेत में उसने खेती करवाई थी। परन्तु वर्षा नहीं होने के कारण अंकुरण जल गए थे। एक तरफ सुखा ही मार तो दूसरी तरफ बाढ़ और तुफान के मार से सीता का घर बर्बाद हो गया था। कटक में लौटा गुणनिधि महानदी की इस बाँध की सुरक्षा के लिए गाँव के युवकों को स्वयंसेवी दल बनाकर बाँध की सुरक्षा में सब संलग्न थे । लक्ष्मी भी बडे लड़के को बाँध पर भेजकर दो लड़कियों और एक साल के लड़का के साथ घर पर है। लक्ष्मी भी पूर्व के आधार पर कुछ चिउड़ा बर्तन-कपड़ा संग्रह कर लिया । गाय, बकरियों के पगहा खोल दिया अच्युत तो बाँध पर ही जूझ रहा था। बाढ़ आ गई और शोर मच गया। गुणनिधि-काम में जुटा था। लोगों में जोश भर रहा था और लोगों को ऊँचे पर जाने का निर्देश भी दे रहा था। सब लोगों का विश्वास आशंका में बदल गया। लोग काँपते पैरों से टीले की ओर भागे। स्कूल में पानी भर गये । देवी स्थान भी पानी से भर गया। लोग हतास थे अब तो केवल माँ चंडेश्वरी का ही भरोसा है। लक्ष्मी भी अच्यूत की आशा छोड़कर जैसे-तैसे बच्चों को लेकर भाग रही थी क्योंकि बाढ़ वृक्ष घर सबों को जल्दी-जल्दी लील कर रही थी। शिव मन्दिर के समीप पानी के बहाव इतना बढ़ गया कि लक्ष्मी बरगद की जटा में लटककर पेड़ पर चढ़ गई । वह बेहोश हो गई । कोई किसी की पुकार सुननेवाला नहीं। टीले पर लोग अपने को खोज रहे थे। स्कूल भी डूब चुका था। अतः लोग कमर भर पानी में किसी प्रकार खड़े थे। लक्ष्मी को होश आने पर उसका छोटा लडका लापता था। वह रो चिल्ला रहा थी, पर सुननेवाला कौन था ? लोगों का विश्वास देवी-देवताओं पर से भी उठ गया, क्योंकि इनपर बार-बार विश्वास करके लोग, मात्र ठगे जाते रहे हैं। लक्ष्मी ने पुनः पीछे देखा पर उसकी दृष्टि शुन्य थी। फिर भी एक शिशु शव को उसने पेड़ की तने पर से उठा लिया और सीने से लगा लिया यद्यपि वह उसका पुत्र का शव नहीं था।